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वाराणसी में ‘राजभर’ शब्द हटाने को लेकर विवाद, स्मृति द्वार पर विरोध तेज, उद्घाटन के कुछ ही दिन बाद स्मृति द्वार पर छेड़छाड़, समाज में गहरी नाराज़गी

 

फोटो साभार - सोशल मीडिया


महाराजा सुहेलदेव स्मृति द्वार से ‘राजभर’ शब्द हटाने पर समाज में उबाल

राजभर समाज की अस्मिता पर हमला या महज़ शरारत? वाराणसी में विरोध प्रदर्शन

उद्घाटन के कुछ ही दिन बाद स्मृति द्वार पर छेड़छाड़, समाज में गहरी नाराज़गी

दोषियों पर कार्रवाई की मांग, राजभर समाज ने चेताया: आंदोलन और तेज़ होगा

वाराणसी।  वाराणसी के सारनाथ थाना क्षेत्र में स्थित महाराजा सुहेलदेव राजभर स्मृति द्वार पर शनिवार को उस समय तनाव का माहौल बन गया जब यह सूचना फैली कि स्मृति द्वार से ‘राजभर’ शब्द को हटा दिया गया है। यह खबर जैसे ही स्थानीय लोगों और विशेष रूप से राजभर समाज के लोगों तक पहुंची, वहां भारी संख्या में समाज के लोग इकट्ठा हो गए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। स्मृति द्वार, जिसे अभी हाल ही में, 10 जून को उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री रविंद्र जायसवाल ने उद्घाटन किया था, समाज की ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखा जाता है। लेकिन उद्घाटन के कुछ ही दिनों में उस पर इस प्रकार की छेड़छाड़ ने न सिर्फ जनमानस को आहत किया है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक हलकों में भी हलचल पैदा कर दी है।

स्थानीय लोगों और समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि स्मृति द्वार से जानबूझकर ‘राजभर’ शब्द हटाया गया है। इसको लेकर समाज के नेताओं ने आरोप लगाया कि यह एक योजनाबद्ध साजिश का हिस्सा हो सकता है, जिसके अंतर्गत महाराजा सुहेलदेव की पहचान को किसी विशेष समाज से जोड़ने की बात को नकारा जा रहा है। ज्ञात हो कि महाराजा सुहेलदेव को राजभर समाज ऐतिहासिक रूप से अपना प्रतीक मानता है और उनके नाम के साथ ‘राजभर’ शब्द जुड़ा रहना समाज की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है।

प्रदर्शन के दौरान विधायक प्रतिनिधि और भाजपा जिला उपाध्यक्ष संजय सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, “यह केवल एक शब्द को हटाने का मामला नहीं है। यह हमारे इतिहास, हमारी पहचान और हमारी अस्मिता पर सीधा हमला है। महाराजा सुहेलदेव न केवल हमारे समाज के गौरव हैं, बल्कि उनके योगदान को दबाने का प्रयास करना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें इस विषय की जानकारी माननीय मंत्री अनिल राजभर से मिली, और उनके निर्देश पर हम यहां एकत्र हुए हैं। जब तक ‘राजभर’ शब्द स्मृति द्वार पर पुनः नहीं लिखा जाता और इस कृत्य के दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, तब तक हमारा आंदोलन जारी रहेगा।”

वहीं, सुभासपा के जिलाध्यक्ष उमेश राजभर ने इसे समाज के साथ खुला अन्याय बताते हुए कहा कि यह राजनीतिक साजिश के तहत किया गया कृत्य प्रतीत होता है। उनके अनुसार, “यह राजभर समाज के इतिहास को मिटाने की कोशिश है, ताकि समाज की ऐतिहासिक भूमिका को नकारा जा सके। हम इसे किसी भी कीमत पर सहन नहीं करेंगे। प्रशासन को ज्ञापन सौंपा जा चुका है और हमने सख्त कार्रवाई की मांग की है। यदि सरकार और प्रशासन ने इस पर तत्काल संज्ञान नहीं लिया, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।”

घटना की जानकारी मिलते ही सारनाथ थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और प्रदर्शन कर रहे लोगों को शांत करने का प्रयास किया। पुलिस अधिकारियों ने लोगों से संयम बनाए रखने की अपील की और आश्वासन दिया कि इस मामले की पूरी गंभीरता से जांच की जाएगी। वहीं, स्थानीय प्रशासन के सूत्रों ने भी यह संकेत दिया है कि स्मृति द्वार पर हुई इस छेड़छाड़ की सीसीटीवी फुटेज खंगाली जा रही है और शरारती तत्वों की पहचान कर उन पर कार्रवाई की जाएगी।

समाज के कुछ वरिष्ठ जनों ने भी कहा कि महाराजा सुहेलदेव की ऐतिहासिक भूमिका को सीमित करना या उनके नाम से ‘राजभर’ शब्द हटाना केवल एक शब्द का परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह एक पूरे समाज को उसके गौरव से वंचित करने की कोशिश है। इतिहासकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि महाराजा सुहेलदेव ने अपने समय में विदेशी आक्रमणकारियों से संघर्ष कर उत्तर भारत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ऐसे में उनके नाम से जुड़े किसी भी शब्द या विवरण को हटाना इतिहास के साथ छेड़छाड़ के समान है।

प्रदर्शनकारियों ने यह भी कहा कि यदि प्रशासन ने इस विषय पर जल्द और ठोस कार्रवाई नहीं की, तो आने वाले दिनों में आंदोलन को पूरे जिले और राज्य स्तर तक विस्तारित किया जाएगा। समाज के युवा वर्ग ने भी इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाते हुए कहा कि यह केवल एक समाज का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे समाज की सांस्कृतिक चेतना का सवाल है।


इस घटना ने वाराणसी सहित पूर्वांचल के विभिन्न इलाकों में राजभर समाज के भीतर गहरी असंतुष्टि और आक्रोश को जन्म दिया है। कई समाजसेवी संगठनों ने भी इस विषय में चिंता व्यक्त की है और स्थानीय प्रशासन से मांग की है कि दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर सजा दी जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

फिलहाल प्रशासन की ओर से स्थिति को नियंत्रण में बताया जा रहा है, लेकिन समाज के प्रतिनिधियों की ओर से लगातार चेतावनी दी जा रही है कि यदि उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आंदोलन को अनिश्चितकालीन किया जाएगा। वहीं, राजनीतिक गलियारों में भी इस घटना को लेकर चुप्पी तोड़ने की अपेक्षा की जा रही है।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐतिहासिक प्रतीकों और नामों को लेकर समाज में गहरी संवेदनशीलता है, और इस तरह की छेड़छाड़ न केवल भावनाओं को आहत करती है, बल्कि सामाजिक समरसता पर भी असर डालती है। प्रशासन और सरकार के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वह स्थिति की गंभीरता को समझे और समय रहते उपयुक्त कदम उठाकर समाज के भरोसे को बनाए रखे।

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