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वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद जमील मर्चेंट का विरोध, सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ पेश की दलीलें



मुंबई: वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 के खिलाफ विरोध स्वरूप, मुंबई के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद जमील मर्चेंट ने अपनी चिंता जताई है कि इसके प्रभाव से भारत के मुस्लिम समुदाय को अपूरणीय क्षति हो सकती है। मर्चेंट, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुने जा रहे पांच याचिकाकर्ताओं में से एक हैं, ने कहा कि संशोधित कानून धार्मिक संस्थानों को खत्म करने, मौलिक अधिकारों को निलंबित करने और वक्फ संपत्तियों पर राज्य के मनमाने नियंत्रण को बढ़ावा देने का काम करेगा।

मर्चेंट ने इसे संविधान और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया और कहा कि यह धार्मिक बंदोबस्ती के लिए दिए गए संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कमजोर करेगा। उनके अनुसार, यह संशोधन मुस्लिम धार्मिक संस्थानों के अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है, जिससे पूरे समुदाय पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

मर्चेंट के प्रतिनिधि अधिवक्ता एजाज मकबूल ने सुप्रीम कोर्ट में एक विस्तृत नोट प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने वक्फ संशोधन अधिनियम के "असंवैधानिक प्रावधानों" का उल्लेख किया। मकबूल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ये प्रावधान न केवल मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं, बल्कि देश के सदियों पुरानी धार्मिक प्रथाओं और सांप्रदायिक सद्भाव को भी प्रभावित कर सकते हैं।

वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 को अप्रैल में संसद द्वारा पारित किया गया था, जो वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन करता है। इसके बाद, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एकीकृत प्रबंधन सशक्तीकरण दक्षता और विकास अधिनियम, 2025 (यूएमईईडी अधिनियम) को मंजूरी दी, जिसे केंद्र सरकार ने तत्काल अधिसूचित कर दिया।

मकबूल ने इस नए कानून को भारत की इस्लामी विरासत के खिलाफ एक कदम बताते हुए कहा कि यह नौकरशाही को धार्मिक संस्थाओं पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एक हथियार प्रदान करता है। उन्होंने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए न्यायपालिका से अपील की कि वह संविधान में दिए गए समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के वादे को कायम रखते हुए इस विधेयक पर विचार करें।

मर्चेंट और उनके समर्थक इस संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की उम्मीद कर रहे हैं। उनकी चिंता है कि अगर यह कानून लागू होता है, तो इसका न केवल मुस्लिम समाज बल्कि देश के धार्मिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर गहरा असर पड़ेगा।

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