कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने 2010 में लोकसभा में आश्वासन दिया था कि कैबिनेट में जातीय जनगणना पर विचार किया जाएगा। तब अधिकांश दल इस समाजिक न्याय की बात कर रहे थे। तबके गृहमंत्री पी चिदंबरम ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जातियों की गिनती जनगणना में नहीं, बल्कि अलग से कराई जाएगी। कांग्रेस सरकार ने जातीय जनगणना के बजाय एक सर्वे कराना उचित समझा जिसे एसइसीसी के नाम से जाना जाता है, उस पर 4893.60 करोड़ रुपए फूंक दिए। इसमें 8.19 करोड़ ग़लतियां पाईं गई। जुलाई 2015 में इसका खुलासा हुआ। कांग्रेस और इंडी गठबंधन के बाकी दलों ने नाहक रूप से जातीय जनगणना के अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल किया, जबकि वह इस मामले में क़तई गंभीर नहीं थे। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ने जातिगत सर्वे कराया था, लेकिन उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया। जो आंकडे जुटाए भी थे, उनमें पारदर्शिता का घोर अभाव था। सीधी बात है कि जातिगत जनगणना, जनगणना के साथ ही संभव हो सकती है।
भारतीय जनता पार्टी ने कभी भी जातीय जनगणना का विरोध नहीं किया। गृहमंत्री अमित शाह ने कई बार यह स्पष्ट किया कि भाजपा जनगणना के खिलाफ नहीं है। भाजपा ने बिहार में भी जातीय जनगणना का समर्थन किया था। उन्होंने 18 सितंबर, 2024 को एलान किया था कि इस फ़ैसले को जनगणना की घोषणा के वक्त एलान किया जाएगा और आज वह घड़ी आ गई।केशव मौर्य ने कहा कि तथ्य है कि 1931 तक देश में जातिगत जनगणना होती थी। 1941 में भी डाटा जुटाया गया, लेकिन उसे प्रकाशित नहीं किया गया। 1951 से 2011 तक जनगणना में हरेक बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं। उन्होंने कहा का आरएसएस ने जातीय जनगणना समझ की भलाई के लिए होना चाहिए। प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हुए मौर्य ने कहा कि मोदी सरकार ने जातीय जनगणना का एलान करके देश में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया है जो विकसित भारत बनाने में सहायक होगी।
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