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पीएमसी बैंक घोटाले में ईओडब्ल्यू चार्जशीट और ग्रांट थॉर्नटन रिपोर्ट से बड़े खुलासे

 



मुंबई – पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक घोटाले की जांच में बड़ा मोड़ आ गया है। आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा दायर ताजा चार्जशीट और फॉरेंसिक ऑडिटर ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट ने घोटाले के सुनियोजित और लंबे समय तक चले षड्यंत्र का पर्दाफाश कर दिया है। इन दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि बैंक अधिकारियों ने जानबूझकर बैंकिंग नियमों का उल्लंघन करते हुए रिकॉर्ड्स में भारी हेरफेर की और वास्तविक वित्तीय स्थिति को छिपाया।

ईओडब्ल्यू की चार्जशीट के मुताबिक, दर्जनों खातों में ब्याज भुगतान दो तिमाहियों से अधिक समय तक लंबित रहा, इसके बावजूद बैंक प्रबंधन ने उन्हें एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) घोषित नहीं किया। यह खेल तब तक चलता रहा जब तक कि भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने ऑडिट कर घोटाले का भंडाफोड़ नहीं किया। कई खाते वर्षों तक अनियमित रहे और इन्हें जानबूझकर छुपाया गया, जिससे बैंक की वित्तीय स्थिति को बेहतर दिखाया जा सके।

वहीं, ग्रांट थॉर्नटन की रिपोर्ट में भी गंभीर खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पीएमसी बैंक ने एचडीआईएल और उससे जुड़ी कंपनियों को दिए गए 41 ऋण खातों को 90 दिनों से अधिक समय तक डिफॉल्ट रहने के बावजूद एनपीए घोषित नहीं किया। चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ खातों में 2002 से ही अनियमितता थी, लेकिन बैंक प्रबंधन लगातार इन्हें छुपाता रहा। रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2019 तक ₹3271.84 करोड़ का ब्याज बकाया होते हुए भी खातों में उसे सही तरीके से समायोजित नहीं किया गया और बहीखातों में कृत्रिम रूप से आय बढ़ाकर दिखाई गई।

इस घोटाले में बैंक की आय और लाभांश के आंकड़े भी वर्षों तक ग़लत तरीके से प्रस्तुत किए गए, जिससे न केवल लाखों ग्राहकों को धोखा दिया गया बल्कि देश के बैंकिंग क्षेत्र की विश्वसनीयता पर भी गहरी चोट पहुँची।

चार्जशीट और फॉरेंसिक रिपोर्ट अब इस बहुचर्चित घोटाले में दोषियों के खिलाफ ठोस साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल की जाएंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इन दस्तावेजों के आधार पर दोषियों को जल्द सजा दिलाई जा सकती है, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में विश्वास बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जाएगा।

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