x पितृपक्ष : श्रद्धा, परंपरा और पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व

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पितृपक्ष : श्रद्धा, परंपरा और पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व

 

फोटो-सोशल मीडिया

भारतीय संस्कृति और परंपरा में अनेक ऐसे पर्व और उत्सव मनाए जाते हैं जो हमें जीवन के गूढ़ सिद्धांतों और आध्यात्मिक महत्व का बोध कराते हैं। इनमें से एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है पितृपक्ष। यह कालखंड विशेष रूप से उन पूर्वजों को समर्पित है जिन्होंने हमें जीवन, संस्कार और धरोहर प्रदान की। पितृपक्ष का समय हर वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या तक (लगभग 15 दिन) माना जाता है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए विधिपूर्वक तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान करते हैं।

पितृपक्ष का धार्मिक महत्व

पितृपक्ष को शास्त्रों में ‘श्राद्ध पक्ष’ या ‘महालय’ भी कहा जाता है। ‘श्राद्ध’ शब्द श्रद्धा से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है श्रद्धा भाव से पूर्वजों का स्मरण और उनका सम्मान करना। ऐसा माना जाता है कि इस पखवाड़े में पितरों की आत्माएं धरती पर अपने वंशजों से मिलने आती हैं और अपने लिए अन्न-जल की अपेक्षा रखती हैं। जो व्यक्ति श्रद्धा और विधि से पितरों का तर्पण करता है, उसे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसका जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण होता है।

गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और मनुस्मृति जैसे धर्मग्रंथों में पितृपक्ष के महत्व का विस्तृत उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि पितरों की कृपा से देवता भी प्रसन्न होते हैं और कुल का कल्याण होता है।

फोटो-सोशल मीडिया


पौराणिक कथाएं और मान्यताएं

पितृपक्ष से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध कथा महाभारत के पात्र कर्ण से जुड़ी है। कथा के अनुसार, कर्ण जब मृत्यु के बाद स्वर्ग गए तो उन्हें स्वर्गलोक में स्वर्ण और रत्नों से सुसज्जित भोजन मिला, परंतु अन्न नहीं मिला। उन्होंने भगवान से कारण पूछा तो उत्तर मिला कि उन्होंने जीवन भर दान तो बहुत किया, किंतु पितरों के नाम से कभी अन्न-जल का दान नहीं किया। तब कर्ण ने एक अवसर मांगा। भगवान ने उन्हें पितृलोक से पृथ्वी पर 15 दिन का समय दिया। यही कालखंड पितृपक्ष कहलाया, जब कर्ण ने अपने पितरों के नाम से अन्न और जल का दान किया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

पितृपक्ष की प्रमुख विधियां

पितृपक्ष में किए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठान हैं – तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध

  1. तर्पण – इसका अर्थ है जल से तृप्त करना। पवित्र नदी, सरोवर या घर पर ही पूर्वजों का नाम लेकर जल अर्पित किया जाता है।

  2. पिंडदान – इसमें चावल, जौ, तिल और आटे के गोल पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किए जाते हैं। यह अनुष्ठान सामान्यतः गया, हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज जैसे तीर्थस्थलों पर किया जाता है।

  3. श्राद्ध भोज – पितरों की स्मृति में ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना तथा दान देना इस परंपरा का हिस्सा है।

श्राद्ध के दौरान सात्विक भोजन बनाया जाता है जिसमें लहसुन, प्याज आदि का प्रयोग वर्जित माना जाता है।


पितरों की कैसे करें प्रसन्न

  • पितरों को प्रसन्न करने के लिए पूरी श्राद्ध के साथ तर्पण और पिंडदान करें, मनुष्य की सच्ची श्रद्धा भाव से पितृ प्रसन्न होते हैं.

  • पितरों की पूजा के दौरान आपने जो भोजन पांच जीवों के लिए निकाला है, उसे पूजा खत्म होने के बाद इन जीवों को खिलाना चाहिए. देव, पीपल, गाय, कुत्ता और कौवे को अन्न और जल देने से पितृ  प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ मछलियों और चींटियों को भी अन्न देना चाहिए.

  • पितृपक्ष में ब्राह्मण को भोज कराने का बहुत महत्व होता है. इस दौरान ब्राह्माण को सम्मान पूर्व घर में आमंत्रित करें और भोजन के साथ दक्षिणा भी जरुर दें. ब्राह्मणों को भोजन कराने और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.

  • पितृपक्ष के दौरान अपने द्वार पर पितरों के लिए दीपक जरुर जलाएं. पितरों के लिए दीपक दक्षिण दिशा में जालाना चाहिए. इससे वह प्रसन्न होते हैं.

  • पितृपक्ष के दौरान घर में सात्विक भोजन बनाएं और वहीं खाएं, मास मदिरा से दूरी बनाकर रखें. 

पितृपक्ष और सामाजिक संदेश

पितृपक्ष केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें पारिवारिक मूल्यों और कृतज्ञता की भावना का भी स्मरण कराता है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि हमारे पूर्वजों ने जिन कठिनाइयों और संघर्षों के बीच हमें जीवन और संस्कृति दी, हम उनके प्रति कृतज्ञ रहें। परिवार के बड़ों का सम्मान करना, वंश परंपरा को आगे बढ़ाना और अपने बच्चों को इन मूल्यों से अवगत कराना भी पितृपक्ष का सामाजिक संदेश है।


पितृपक्ष में किए जाने वाले दान का महत्व

पितृपक्ष में दान का विशेष महत्व है। इस समय जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करना पुण्यकारी माना जाता है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों की संतुष्टि तभी संभव है जब उनके नाम पर भूखों को भोजन और असहायों को सहयोग मिले। यही कारण है कि इस पखवाड़े में जगह-जगह भंडारे और दान-पुण्य के आयोजन किए जाते हैं।

पितृपक्ष और ज्योतिषीय दृष्टि

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृदोष का निवारण करने के लिए भी पितृपक्ष का विशेष महत्व है। जिन परिवारों में संतान सुख की कमी होती है या बार-बार बाधाएं आती हैं, वहां पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करना लाभकारी माना जाता है।

क्षेत्रीय परंपराएं

भारत के विभिन्न हिस्सों में पितृपक्ष अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।

  • बिहार के गया में पिंडदान का विशेष महत्व है। यहां हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं।

  • उत्तर भारत में गंगा, यमुना और सरयू जैसी पवित्र नदियों के तट पर तर्पण करना श्रेष्ठ माना जाता है।

  • दक्षिण भारत में श्राद्ध के दिन विशेष पूजा-पाठ और भोजन बनाने की परंपरा है।

आधुनिक संदर्भ में पितृपक्ष

आज के बदलते समय में जहां लोग व्यस्त जीवनशैली के कारण परंपराओं को निभाने में कठिनाई महसूस करते हैं, वहीं पितृपक्ष अब भी अपनी अहमियत बनाए हुए है। बहुत से लोग अपने पितरों की स्मृति में दान-पुण्य, सेवा कार्य और सामाजिक योगदान देते हैं। यह दर्शाता है कि परंपरा और आधुनिकता का मेल संभव है।


पितृपक्ष केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने पूर्वजों के ऋणी हैं और उनका सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है। श्राद्ध, तर्पण और दान जैसे अनुष्ठानों के माध्यम से हम न केवल पितरों का तृप्तिकरण करते हैं, बल्कि समाज में सेवा और सहयोग की भावना भी फैलाते हैं। भारतीय संस्कृति में पितृपक्ष जैसे पर्व हमें यह सिखाते हैं कि जीवन केवल वर्तमान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अतीत और भविष्य की निरंतरता भी जुड़ी है। अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करके हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी इन मूल्यों से परिचित कराते हैं।

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