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शारदीय नवरात्रि: श्रद्धा, शक्ति और संस्कृति का संगम

 


शारदीय नवरात्रि का पर्व भारत की सनातन परंपरा का एक जीवंत उदाहरण है, जहाँ धर्म, भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाने वाला यह नौ दिवसीय पर्व माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना को समर्पित है। नवरात्रि का महत्व केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत व्यापक है।


नवरात्रि का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णन है कि माँ दुर्गा ने असुरों का संहार कर धर्म की पुनः स्थापना की थी। इसी विजय की स्मृति में नवरात्रि का आयोजन किया जाता है। शारदीय नवरात्रि को विशेष महत्व इसलिए भी प्राप्त है क्योंकि यह माँ दुर्गा की उपासना का मुख्य पर्व माना जाता है।

इन नौ दिनों में साधक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं—

शैलपुत्री – शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक

ब्रह्मचारिणी – तपस्या और संयम का प्रतीक

चंद्रघंटा – साहस और वीरता का प्रतीक

कूष्मांडा – सृष्टि की जननी

स्कंदमाता – मातृत्व और करुणा का प्रतीक

कात्यायनी – न्याय और बल का प्रतीक

कालरात्रि – दुष्ट शक्तियों का विनाश करने वाली

महागौरी – शांति और शुद्धता का प्रतीक

सिद्धिदात्री – सिद्धियों और दिव्य शक्तियों की दात्री


उपासना और व्रत परंपरा

नवरात्रि में उपवास का विशेष महत्व है। भक्तजन नौ दिनों तक फलाहार और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। घर-घर में माँ दुर्गा का कलश स्थापित कर अखंड ज्योति प्रज्वलित की जाती है। सुबह-शाम दुर्गा सप्तशती, चंडी पाठ और देवी स्तुति का आयोजन होता है। कन्या पूजन भी इस पर्व का अहम हिस्सा है। अष्टमी और नवमी के दिन छोटी-छोटी कन्याओं को भोजन कराकर उन्हें देवी स्वरूप मानकर आशीर्वाद लिया जाता है।

नवरात्रि में उपवास का विशेष महत्व है। भक्तजन नौ दिनों तक फलाहार और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।

कलश स्थापना और अखंड ज्योति के समय यह मंत्र गाया जाता है—

"या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥"

यह मंत्र देवी की सर्वव्यापकता और शक्ति का स्मरण कराता है।


फोटो- सोशल मीडिया


सांस्कृतिक उत्सव और लोक परंपराएँ

नवरात्रि केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है। यह पर्व भारतीय समाज की सांस्कृतिक जीवंतता का भी उत्सव है। गुजरात में गरबा और डांडिया रास नवरात्रि का सबसे लोकप्रिय आकर्षण है। रंग-बिरंगे परिधान पहनकर हजारों लोग एक साथ गरबा नृत्य करते हैं, जो माँ दुर्गा के प्रति उनकी भक्ति का प्रतीक होता है। पश्चिम बंगाल में नवरात्रि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। भव्य पंडाल, सुंदर मूर्तियाँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम वहाँ के सामाजिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। कुम्हारटोली में कलाकार महीनों पहले से मूर्तियाँ बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं।उत्तर भारत में रामलीला मंचन और दशहरा उत्सव नवरात्रि का ही हिस्सा है। यहाँ भगवान राम की लंका विजय और रावण दहन के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि सत्य की हमेशा विजय होती है।


आधुनिक संदर्भ में नवरात्रि

आज के समय में नवरात्रि का स्वरूप कुछ बदलता भी दिख रहा है। जहाँ पहले यह केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन तक सीमित था, वहीं अब यह समाजिक एकता और सामूहिक उत्सव का प्रतीक बन चुका है। शहरों में बड़े-बड़े मैदानों और पंडालों में सामूहिक गरबा, संगीत और नृत्य का आयोजन होता है। कॉर्पोरेट और शैक्षणिक संस्थान भी नवरात्रि विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इससे युवाओं में भारतीय संस्कृति के प्रति जुड़ाव और गौरव की भावना बढ़ती है।


आर्थिक और सामाजिक पहलू

नवरात्रि का संबंध केवल धार्मिक आस्था से नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा है। इस दौरान बाज़ारों में रौनक देखते ही बनती है। परिधान, गहने, सजावटी सामान, मूर्तियाँ और मिठाइयों की बिक्री चरम पर होती है। छोटे-बड़े व्यापारी और कारीगरों के लिए यह समय सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रि रोजगार और आजीविका का बड़ा माध्यम भी है। मूर्तिकार, दर्जी, संगीतकार और आयोजन से जुड़े श्रमिकों को इस दौरान अच्छा काम मिलता है।


नवरात्रि और स्त्री शक्ति का संदेश

नवरात्रि केवल देवी पूजन का पर्व नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति का उत्सव है। माँ दुर्गा की पूजा करते समय यह संदेश दिया जाता है कि हर स्त्री में अपार शक्ति, साहस और करुणा निहित है। समाज में महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह पर्व प्रेरणा स्रोत है। आज भी ग्रामीण इलाकों में नवरात्रि के अवसर पर महिलाएँ विशेष भजन मंडलियाँ और सांस्कृतिक आयोजन करती हैं। यह उनका सामाजिक और धार्मिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने का प्रतीक है।


पर्यावरण और नवरात्रि

हाल के वर्षों में नवरात्रि से जुड़ी एक बड़ी चुनौती पर्यावरण संरक्षण की भी है। मूर्तियों के निर्माण में प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल रंगों का इस्तेमाल नदियों और समुद्रों को प्रदूषित करता है। इसीलिए अब धीरे-धीरे पर्यावरण मित्र मूर्तियों और प्राकृतिक रंगों का उपयोग बढ़ रहा है। मुंबई, पुणे और कोलकाता जैसे महानगरों में ग्रीन दुर्गा पूजा की पहल को काफी सराहना मिल रही है।


नवरात्रि की समकालीन प्रासंगिकता

आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में नवरात्रि लोगों को आत्मिक शांति और सामाजिक एकता का अवसर प्रदान करती है। नौ दिनों का उपवास न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी अनुशासित बनाता है। साथ ही, यह पर्व हमें याद दिलाता है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई और सत्य की ही जीत होती है। यही संदेश रामलीला और रावण दहन के माध्यम से भी लोगों तक पहुँचाया जाता है।


आधुनिक संदर्भ और स्त्री शक्ति का संदेश

नवरात्रि केवल देवी पूजन का पर्व नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति का उत्सव है। माँ दुर्गा की पूजा करते समय यह श्लोक बार-बार गूंजता है—

"सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥"


शारदीय नवरात्रि भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों और जीवंत परंपराओं का प्रतीक है। यह पर्व हमें भक्ति, शक्ति और एकता का पाठ पढ़ाता है। माँ दुर्गा की उपासना के इन नौ दिनों में जहाँ भक्तजन पूजा-पाठ और उपवास में लीन रहते हैं, वहीं समाज सामूहिक उत्सव और सांस्कृतिक आयोजनों के जरिए अपनी एकता और परंपरा का प्रदर्शन करता है।

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