x वाइफ के होम ट्यूशन पर टैक्स, जानें कब होगा इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी

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वाइफ के होम ट्यूशन पर टैक्स, जानें कब होगा इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी

फोटो-सोशल मीडिया


 मुंबई। आजकल परिवारों में अतिरिक्त आय के रूप में ट्यूशन पढ़ाना एक सामान्य प्रचलन बन गया है, खासकर घर की महिलाओं के लिए। यह न केवल उनकी खाली समय को सार्थक बनाता है, बल्कि अतिरिक्त आमदनी का एक साधन भी बनता है। हालांकि, इसके साथ ही यह सवाल भी उठता है कि क्या इस प्रकार की अतिरिक्त आय पर भी टैक्स चुकाना होगा? क्या ट्यूशन पढ़ाने से प्राप्त होने वाली आय को आयकर के दायरे में शामिल किया जाएगा? इन सवालों के जवाब के लिए पूर्वांचल का सामना  ने चार्टर्ड अकाउंटेंट और टैक्स एक्सपर्ट सुरेश सुराणा से बात की।

क्या होम ट्यूशन से होने वाली आय टैक्स के दायरे में आएगी?

ट्यूशन पढ़ाना अक्सर छोटे स्तर पर किया जाता है, जिसमें कमर्शियल सेटअप का अभाव होता है और यह एक परिवारिक सहयोग की तरह होता है। ऐसे में क्या इस पर टैक्स चुकाना जरूरी है? सुरेश सुराणा का कहना है कि अगर घर पर ट्यूशन का काम छोटे स्तर पर किया जाता है और यह एक प्रकार से 'आय से अन्य स्रोत' के रूप में दिखाया जा सकता है, तो इस पर टैक्स का बोझ नहीं होगा, बशर्ते कुल आय कर छूट की सीमा (Exemption Limit) से अधिक न हो।

फोटो- सोशल मीडिया

कर छूट सीमा से अधिक होने पर क्या करें?

सुरेश सुराणा ने आगे कहा, "अगर किसी महिला की ट्यूशन से होने वाली आय कर छूट सीमा (जो कि वर्तमान में ₹2.5 लाख प्रति वर्ष है) से अधिक है, तो उन्हें अपनी आय के बारे में आयकर रिटर्न (ITR) फाइल करना होगा। यह नियम उन महिलाओं पर लागू होगा जिनकी ट्यूशन से कुल आय एक वित्तीय वर्ष में ₹2.5 लाख से अधिक हो।" इसका मतलब यह हुआ कि यदि किसी महिला की आय इस सीमा से अधिक हो, तो उसे टैक्स का भुगतान करने की जिम्मेदारी आएगी।


50 लाख रुपये तक के आय पर प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन का विकल्प

अगर किसी महिला की ट्यूशन से होने वाली आय ₹50 लाख तक है, तो उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। इस स्थिति में वह प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन के विकल्प का उपयोग कर सकती हैं।


सुराणा ने विस्तार से बताया, "अगर किसी महिला की ट्यूशन से ग्रॉस इनकम एक वित्तीय वर्ष में ₹50 लाख से कम है, तो वह धारा 44ADA के तहत प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन का लाभ ले सकती हैं। इस विकल्प के तहत, टैक्स पेयर की कुल आय का 50% हिस्सा इनकम के रूप में माना जाता है, जो कि ट्यूशन से प्राप्त होने वाली आय का आधा हिस्सा होता है। इसमें सबसे बड़ा फायदा यह है कि महिला को बुक्स ऑफ अकाउंट को मेंटेन करने की जरूरत नहीं पड़ती है और न ही उसका ऑडिट कराने की आवश्यकता होती है। यह विकल्प छोटे व्यवसायों और पेशेवरों के लिए खासतौर पर लाभकारी है जो बही-खाता रखना नहीं चाहते।"


आय को वास्तविक रूप में डिक्लेयर करने का विकल्प

यदि महिला अपनी वास्तविक आय को डिक्लेयर करना चाहती हैं, तो इसके लिए भी एक अलग विकल्प है। वह ITR-3 फॉर्म का उपयोग करके "बिजनेस या प्रोफेशन से प्रॉफिट और गेंस" के तहत अपनी आय का विवरण दे सकती हैं। इसके तहत, वह अपनी कुल आय से उन खर्चों को घटा सकती हैं, जिनकी अनुमति आयकर के नियमों के तहत दी जाती है। इस विकल्प के लिए महिला को धारा 44AA के तहत बुक्स ऑफ अकाउंट रखने और उनका ऑडिट कराना पड़ सकता है।

फोटो-सोशल मीडिया

ITR फाइल न करने पर टैक्स नोटिस का खतरा

अगर किसी महिला की आय छूट सीमा से अधिक है, और वह इसका सही तरीके से घोषणा नहीं करती है, तो उसे इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से नोटिस मिल सकता है। सुरेश सुराणा ने चेतावनी दी, "यदि किसी महिला की आय छूट सीमा से अधिक हो और वह आयकर रिटर्न (ITR) फाइल नहीं करती है, तो उसे टैक्स डिपार्टमेंट की ओर से नोटिस मिल सकता है। इस स्थिति में उसे टैक्स चुकाने के अलावा, जुर्माना भी लग सकता है, जो बाद में उस पर भारी पड़ सकता है। इसलिए आय के सभी स्रोतों को सही तरीके से डिक्लेयर करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।"


ITR के विकल्प: ITR-1, ITR-2 या ITR-3?

यदि महिला अपनी ट्यूशन से प्राप्त आय को "आय से अन्य स्रोत" के तहत दिखाना चाहती हैं, तो वह ITR-1 या ITR-2 फॉर्म का इस्तेमाल कर सकती हैं। यदि ट्यूशन से होने वाली आय व्यापारिक गतिविधि के रूप में है, तो उन्हें ITR-3 फॉर्म का उपयोग करना होगा।

सुरेश सुराणा का कहना है, "अगर महिला अपनी ट्यूशन की आय को 'आय से अन्य स्रोत' के तहत दिखाना चाहती हैं तो उसे ITR-1 या ITR-2 का इस्तेमाल करना होगा। लेकिन यदि वह अपनी ट्यूशन की आय को एक व्यवसायिक गतिविधि के रूप में डिक्लेयर करती है, तो उसे ITR-3 फॉर्म का प्रयोग करना चाहिए।"ट

फोटो-सोशल मीडिया

आखिरकार, यदि किसी महिला का ट्यूशन पढ़ाने का कार्य परिवार के आय के स्रोत के रूप में सामान्य है और उसकी आय निर्धारित सीमा से अधिक नहीं है, तो उसे आयकर का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन यदि आय छूट सीमा से अधिक हो, तो उसे आयकर रिटर्न फाइल करना अनिवार्य होगा। इसके अलावा, यदि आय ₹50 लाख तक है तो वह प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन के विकल्प का लाभ उठा सकती हैं, जिससे टैक्स भुगतान की प्रक्रिया सरल और सुविधाजनक बन जाती है। आयकर के नियमों को समझना और सही तरीके से पालन करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है, ताकि किसी प्रकार की कानूनी परेशानी से बचा जा सके।



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