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फोटो- सोशल मीडिया |
मुंबई: येस बैंक के पुराने लेन-देन की जांच कर रही एक विशेष ऑडिट रिपोर्ट ने ₹500 करोड़ के एक बड़े लोन सौदे में गंभीर खामियों और फंड के संदिग्ध इस्तेमाल का संकेत दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक, बैंक ने 2017 में एचडीआईएल कंपनी का लगभग ₹523 करोड़ का लोन ₹518 करोड़ में सुरक्षा एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी (एआरसी) को बेच दिया। हालांकि, ऑडिट जांच में सामने आया कि यह सौदा "फंड राउंड-ट्रिपिंग" का शक पैदा करता है।
रिपोर्ट के अनुसार, येस बैंक का दावा था कि उसे इस सौदे के लिए 15% कैश मार्जिन मिला था, लेकिन ऑडिट जांच में यह पाया गया कि यह रकम अप्रत्यक्ष रूप से येस बैंक से ही आई थी, यानी बैंक ने ही खरीदार कंपनी को खरीदारी के लिए पैसा दिया था। इस मामले में सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि न तो इस सौदे में कोई ओपन बिडिंग हुई थी, और न ही स्वतंत्र वैल्यूएशन कराया गया था। इसके अलावा, कुछ ऐसे खाते जो एनपीए बनने के कगार पर थे, उन्हें बिना किसी बाजार मूल्यांकन के बेच दिया गया।
2017 में इस एआरसी ने येस बैंक के 98% ऐसे एसेट्स खरीदे, जो संभावित रूप से डूबने के कगार पर थे, और इसने पक्षपाती व्यवहार के सवाल खड़े किए। रिपोर्ट ने बैंक के तत्कालीन प्रबंधन द्वारा 2020 से पहले किए गए क़र्ज़ और पुनर्गठन फैसलों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, अब नियामक एजेंसियों और जांच अधिकारियों की नजर इस सौदे पर टिकी हुई है। यदि जांच में गड़बड़ी साबित होती है, तो यह मामला न केवल येस बैंक और सुरक्षा एआरसी, बल्कि पूरे एसेट रिकवरी सेक्टर में बड़े बदलावों की वजह बन सकता है।
इस पूरे मामले को लेकर अब बैंक और संबंधित संस्थाओं की सफाई का इंतजार किया जा रहा है। वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता के मुद्दे पर यह जांच महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, खासकर तब जब एसेट रिकवरी कंपनियों के संचालन के तरीकों पर सवाल उठाए जा रहे हों।
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